Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
View full book text
________________
७४२
कातन्त्रव्याकरणम्
१७९
३५३
१८४
Hor
१२७३. सर्वसमासोपलक्षणम् ५ /१२९५. सामान्यवाचिता २९१ १२७४. सर्वसादृश्यार्थम् २८० १२९६. सामीप्यार्थम् ५४९ १२७५. सर्वो हि धात्वर्थः ७७,८८ १२९७. सावकाशता ६०, ६१ १२७६. ससोमको हि यागः क्रतुः ३६९ | १२९८. सावकाशत्वम् ६१ १२७७. सहकारित्वम् १०३ | १२९९. साहचर्यम्
४९८ १२७८. सहभावनायाम् | १३००. साहचर्यात् २९२ १२७९. सहभावमात्रम् १६८ १३०१. साहित्यम् १२८०. सहार्थयोगः १६७ १३०२. साक्षी १२८१. साकल्यम् ३६० | १३०३. सिंहावलोकिता१२८२. साकल्यस्य संहिता १४८ धिकारम् १२८३. साङ्ख्यमतम् ८३, ८४ | १३०४. सिद्धं हि कारक १२८४. सादृश्यम् १६, ३५९, ४६९ | भवति १२८५. साध्यता
८९ १३०५. सिद्धता १२८६. साध्यत्वम् २७२ | १३०६. सिद्धान्तः ३०३, ३१० १२८७. साध्यभेदः १९७ १३०७. सिद्धान्तान्तरम् ८९ १२८८. साध्यसाधनप्रतीतिवत् १३२ १३०८. सिद्धान्तितम् ११, ९७ १२८९. साध्यसाधनभावस्या- |१३०९. सिद्धान्तो रमणीयः ४४
विरुद्धत्वात् १७० १३१०. सिद्धे सत्यारम्भो १२९०. साध्यसाधनलक्षण : ___ १४६, नियमार्थः
१४८ १३११. सीमा १२९१. साध्यसाधनसंबन्धः १५० | १३१२. सीमा अण्डकोषः १३४ १२९२. सामर्थ्यम् १५८ १३१३. सुखं स्थितान्यागाराणि ८९ १२९३. सामानाधिकरण्यम् २४२, | १३१४. सुखप्रतिपत्त्यर्थः १९६
३०४,३९२ | १३१५. सुखप्रतिपत्त्यर्थ एव १७० १२९४. सामान्यवाचका हि |१३१६. सुखप्रतिपत्त्यर्थमेव २२०, १२९,१३२
५१४,५२०
२४०
२९
शब्दाः

Page Navigation
1 ... 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806