Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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परिशिष्टम् -८
७४१ १२२६. सखी
२३६ | १२५०. समासाभिधानमेव ३५२ १२२७. सतोऽपि चाविवक्षा १३७ | १२५१. समासार्थः ३८३ १२२८. सत्ता
४७० | १२५२. समाहारः ३५१, ३६८ १२२९. सत्तारूपव्यापारः १०३ |१२५३. समाहारद्वन्द्वः १२३०. सद्भावः सत्ता ४७० | १२५४. समाहारप्राधान्यम् १२३१. सद्यआद्यादेराकृति
| १२५५. समुच्चयः गणत्वात्
५१८ | १२५६. समुच्चयादिः १२३२. सन्देहव्युदासाय ३०६ / १२५७. समुदायः १२३३. सन्धिः
२७५ १२५८. समुदायव्यपदेशः २९८ १२३४. सन्धिलक्षणं विभक्तिकार्यम् २७५ | १२५९. समुदायसिद्धीः ३२२ १२३५. सप्तच्छदाः १८० | १२६०. समुदायार्थः १७४ १२३६. सप्तपर्णः १८४ | १२६१. समुदाये प्रवृत्ताः शब्दाः १२३७. सप्रयोजनम् २०२ अवयवेऽपि वर्तन्ते २९३ १२३८. समवायः ६३ | १२६२. समृद्धिः
३६२ १२३९. समानलक्षणदीर्घः २२, २७, १२६३. समेन धावति
१३८ | १२६४. सम्पन्नो यवः ११५ १२४०. समानाधिकरणम् १७७ १२६५. सम्प्रदानत्वम् ४९,५०,५२ १२४१. समाम्नायविदः ४४५ १२६६. सर्वकारकग्रामः १२४२. समासः षड्विधः २६४ / १२६७. सर्वतान्त्रिकत्वम् ६४ १२४३. समासराशेर्नित्यत्वात् २२७ १२६८. सर्वदा
५१३ १२४४. समासलाभार्थ्यम् ४ | १२६९. सर्वनामस्थाने १२४५. समासवचनम् २६१ / १२७०. सर्वनाम्नो बुद्धिस्थ१२४६. समासवृत्तिः
| वाचित्वात् १२१, १२६ १२४७. समासव्यासधारणम् __ २६३ | १२७१. सर्वपारिषदत्वाद् १२४८. समासानुवृत्तिः २६९ व्याकरणस्य ३२ १२४९. समासान्तविधेरनित्यत्वात् २९९ | १२७२. सर्ववादिसम्मतम् २२९
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