Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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७३७
३४
योगः
३०५
२००
परिशिष्टम् -८ १०४०. विभक्तिः
२ | १०६३. विवक्षैव श्रेयसी ७६ १०४१. विभक्तिकार्यम् २७८ | १०६४. विशिष्टजातिवचनाः २९० १०४२. विभक्तित्वम् ६, ५०० | १०६५. विशिष्टवृत्तिः ९६ १०४३. विभक्तिविपरिणामः ५०१ | १०६६. विशिष्टार्थप्रतिपत्त्यर्थम् १७७ १०४४. विभक्तिविपरिणामेन २११ | १०६७. विशिष्टार्थप्रतीतिः ३०३ १०४५. विभक्तिविषये २१० | १०६८. विशेषकाः ३७३ १०४६. विभक्तिसंज्ञाः ४९८ | १०६९. विशेषणं हि द्विविधम् १७६ १०४७. विभक्त्यर्थानुसंधानम् १२१ | १०७०. विशेषणम् ८७,१७५,१८२, १०४८. विभागः
३०५,३७७ १०४९. विघागाश्रयत्वम् ३४ १०७१. विशेषप्रयोगः १७३ १०५०. विभाषा ३७० | १०७२. विशेष्यम् १०५१. विभाषानुवर्तनात् १८९ | १०७३. विशेष्यविवक्षया १०५२. विरामः
२९ १०७४. विशेष्यविवक्षा ११ १०५३. विवर्तनम् ३६६ | १०७५. विशेष्यविशेषणभावस्य १०५४. विवक्षया ५०७, ५२४ । प्रयोक्तुरायत्तत्वम् १०५५. विवक्षया नार्थो भिद्यते ३२९ | १०७६. विश्लेषः
३० १०५६. विवक्षया सिद्धम् ७५ १०७७. विषमेण धावति ६६ १०५७. विवक्षा २८, ४७, ५४, ६९, १०७८. विषयविषयिभावः १४९
१४७, ३६१, ४३९, १०७९. विषयविषयिलक्षणः १४६
४४९, ४५० | १०८०. विषयसप्तमी १६, ३८९ १०५८. विवक्षा गरीयसी ३०/१०८१. विषयः
५८ १०५९. विवक्षातः कारकाणि ११० १०८२. विषयसप्तमीपक्षे २७७ १०६०. विवक्षादर्शनात् १७९ १०८३. विषयो ह्यनन्यभावः ६३ १०६१. विवक्षावशात् ४६० १०८४. विष्णुं यजते १०६२. विवक्षातो हि कारकाणि १०८५. विसंवादः भवन्ति
३२ | १०८६. विस्पष्टार्थम् २१५
४१९

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