Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 770
________________ ७२८ कातन्वयाकरणम् २८६ ४११ २८२ ४८ ६१९. नमस्कारः १६१ ६४१. निपातनलक्षणम् १४७ ६२०. न लोभो नाशुभा मतिः ३१० ६४२. निपाताः १४,१७ ६२१. न साध्यक्षतिः ३३७ | ६४३. निपातनस्येष्टविषयत्वात् ५२३ ६२२. न हि पदार्थः सत्तां ६४४. निमित्तनिमित्तिसंबन्धः १६१ जहाति ११५,१२५,४६९ /६४५. नियतप्रयोगा हि ६२३. न हि वाक्यं संज्ञा ३६२ केचिदव्ययाः ६२४. न हि वाक्येन संज्ञा ६४६. नियमव्याख्यानार्थम् २७७ गम्यते ३१९ ६४७. नियमार्थम् २७६ ६२५. न हीदमर्धजरतीयम् ६४८. निरन्वया संज्ञा ६२६. न ह्येकमुदाहरणम्० ४३४ | ६४९. निरिन्द्रियमधिष्ठानम् २९,३२ ६२७. नक्षत्रमालोक्य वाचो | ६५०. निरुक्तम् विसृजेत् २२६ ६५१. निर्गलितार्थः ६२८. नक्षत्रयोगः ४४१ / ६५२. निर्णयः ६२९. नागृहीतविशेषणा बुद्धिः २८९, ६५३. निर्दिश्यमानप्रतियोगी १४० __ २९७, ३०६, ३५५ | ६५४. निर्दिष्टविषयः ३९ ६३०. नानात्वम् |६५५. निर्देशः ६३१. नामलिङ्गानुशासनम् २६१ | ६५६. निर्धारणे ६३२. नारायणं नमस्कृत्य१५९, ४५६ | ६५७. निर्वर्तना १०२ ६३३. नाव्ययकृविधिः ११२ | ६५८. निष्ठाश्रयः २०२ ६३४. नास्तिकः ३१/६५९. नीलोत्पलम् ६३५. निःसन्देहार्थः | ६६०. नैयायिकमतम् ८४ ६३६. निःसन्देहार्थम् २५, २४४ | ६६१. न्याय्यः ६३७. नित्ययोगे ४७९ ६६२. न्यूनतादूषणम् ५२९ ६३८. नित्यसमासः २९७ | ६६३. पञ्चकपक्षे ६३९. निन्दाविवक्षा ३२९/६६४. पञ्चकेन पशून् ६४०. निपातनम् ३९६, ५१६ | क्रीणाति ६६,६८ १८६ २७० ५२९ ११६,१२४

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