Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 768
________________ ७२६ कातन्त्रव्याकरणम् ५२०. ताच्छील्ये २५७ ५४५. त्रैलोक्यराज्यमपि १५६ १२१ ५४६ . त्वं मासं कर्म करिष्यसि ६६ ५२१. तात्पर्यम् ५२२. तादर्ध्यचतुर्थी ४५, ४७५४७. ददातिः ५१ ५२३. तादर्ध्यचतुर्थ्या सिद्धम् १६५ ५४८. दर्शनम् २५७ २९५ | ५४९. दक्षिणेन ग्रामम् १४५ ५२४. तादर्थ्यम् ४९, ५६, ५२५. तादर्ध्यविवक्षयैव १६० | ५५०. ५२६. तादर्थ्यविवक्षा ४७, ४८, १५३, ५५१. दात्रेण धान्यं लुनाति ६६,७१ दानम् ५२ १६४, १६६ ५५२. दायादः १८४ दिक् _३७,२८३,३०३ १७९ | ५५३. १६४ ५५४. दिङ्मात्रमिह दर्शितम् ४१६ १६६ ५५५. दित्सा ५६, ५७ ११७ ५५६. दिवि देवाः ५८, ५९ १२३ | ५५७. दुःखहेतु: २९ ३२७ ५५८. दूषणम् ५२ १५५ ५५९. दूषणान्तरम् ११२ ५८,५९,६४ / ५६०. दृष्टपरिकल्पनावशात् १७७ ६३ ४७३ ५१ ४१८ ८० ५२७. तादर्ध्यविवक्षायाम् ५२८. तादर्थ्ये ५२९. तादर्थ्ये चतुर्थी ५३०. तारकाणां भेदविवक्षा ५३१. तावन्मात्रविवक्षया ५३२. तिरस्कारार्थम् ५३३. तिरस्कारावगमः ५३४. तिलेषु तैलम् ५३५. तुल्याधिकरणता ५३६. तुल्याधिकरणत्वम् २८८,२९३ ५६२. ५३७. तुष्यत्तु वा दुर्जनः ५३८. तेनायमर्थः ५३९. त्यागः ५४०. त्यागकारणम् ५४१. त्याद्यन्तप्रयोगेष्वेव ५४२. त्रिफला ५४३. त्रिमुनि ५४४. त्रिविधमेतत् कर्म २८७ ५६१. दृष्टादृष्टपरमाणवः देवता ३७ | ५६३. देवतायै पुष्पं ददाति ६९ ५६४. देवदत्तस्य गुरुकुलम् ५३ ५६५. देवदत्तो ग्रामं गच्छति ५१, १६६ | ५६६. १९१ ३२४ | ५६७. देश इह जनपदाध्यासितो गृह्यते देशान्तरप्रापणम् ३६९ ४५५ ४८ ९ ५६८. दैवज्ञः ७४ | ५६९. दैवपर्यालोचनम् ४७,४८,५५

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