Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 756
________________ ७१४ ४१५ ९७. ११ २४२ २१८ २१५ ४११ कातन्वव्याकरणम् ९३. भावः ४७२, ४७३ | १२०. वैषयिकः ५८,६३ ९४. मध्यमपदलोपी समासः १६६ | १२१. व्यधिकरणत्वम् १७८ ९५. युक्तम् २५४ | १२२. व्यपदेशान्तरनिमित्तम् ७७ ९६. येन विधिस्तदन्तस्य | १२३. व्याकरणम् लिङ्गम् १२४. व्याप्तिः ९८. लिङ्गार्थवचने १२५. व्याप्तिरेव श्रेयसी १७९ ९९. लुक् १२६. व्याप्यत्वम् ८१ १००. लोपः ५३३ /१२७. संख्या १०४ १०१. वंशः 35२ | १२८. संज्ञान्तरैरनाख्यातम् ७२ १०२. वयः १२९. संप्रदानम् ४५,५३,५६ १०३. वर्ग: १३०. संप्रदानादयः संज्ञाः ५६ १०४. वर्गान्तः १३१. संप्रसारणम् ४०५ १०५. वर्णनाशः १३२. संबन्धमात्रविवक्षायाम् १६६ १०९ १०६. वर्णविकारः १३३. समर्थाचरणकारकम् ४११ १३४. समानलिङ्गत्वम् १७८ १०७. वर्णविपर्ययः १३५. समानविभक्तित्वम् १०८. वर्णागमः १७८ १३६. समानाधिकरणत्वम् १७८ १०९. वाक्यम् २५४,२५५,३०१ १३७. समासः २५४ ११०. वाक्यसंज्ञा १३८. समाहारः ३५२, ३५३, ३७६ १११. विकरणः १३९. समुच्चयः ३५२, ३५३ ११२. विकार्यम् ७२, ७७, ८५, ८६ १४०. सामीपिकः ५८, ६४ ११३. विभक्तयः १९०, २५६ १४१. स्त्री २३२ ११४. विभक्तिः १, १२,६५ | १४२. स्वं रूपं शब्दस्याशब्दसंज्ञा ३ ११५. विभाषा १४३. स्वतन्त्रत्वम् १०४ ११६. विशेषणत्वम् १४४. हेतुः १७१ ११७. विशेष्यत्वम् १४५. हेतुकर्ता १०५ ११८. विसर्जनीयस्य २२० | १४६. हेतुत्वम् १०९ ११९. वृत्तिः १९६, २५६ | १४७. हेत्वधीनः कर्ता १७२ ४११ ४११ १७६

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