Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 752
________________ कातन्त्रव्याकरणम् ५१६ 5 sx or mor ४८१ ६६१. शालीयः ४६२/६८७. सचक्रम् ३६०, ३६३ ६६२. शिंशपस्थलम् ४०३ ६८८. सणः ५४२ ६६३. शुक्लकृष्णः २९९ ६८९. सद्यः ६६४. शुक्लता ४७२ ६९०. सद्यआद्याः ५१६, ५१८ ६६५. शुक्लत्वम् ४७२ |६९१. सद्रोणा ६६६. शुन्यम् ४६५ / ६९२. सपत्नी २४२ ६६७. शुभ्रनाभिः ६९३. सपुत्रकः ३४३ ६६८. शून्यम् । ६९४. सपूर्वः ६६९. शेषाः ६९५. सब्रह्म ४१० ६७०. शैवः ६९६. समासः २६२, २६५, ३०२ ६७१. शौक्लिः ४३४ | ६९७. सर्वथा गच्छति ५२३ ६७२. शौवः ५३५ / ६९८. सर्वथा बिभेति ५२३ ६७३. शौवादंष्ट्रो मणिः ५४९ ६९९. सर्वकशी नटः ६७४. शौवापदम् ५४९ |७००. सर्वतः ५०५ ६७५. श्यामगवः ४१६, ४१८ ७०१. सर्वत्र ५०८ ६७६. श्राद्धम् ४८२ |७०२. सर्वश्वेतः ३५६ ६७७. श्रायसः ५४२ / ७०३. सलोमकः ६७८. श्रेणिकृताः ७०४. साक्तुसैन्धवः ५४० ६७९. श्वागणिकः |७०५. साग्निः कपोतः ६८०. श्वापदम् | ७०६. सापत्नः २४२ ६८१. श्वाभस्त्रिः ७०७. सामग्री ६८२. षोडश ४११ |७०८. सामाजिकः ४५१, ४५५ ६८३. संख्या ४९७, ४९९ ७०९. सामीची ४७७ ६८४. सकिखि ३५८, ३६० |७१०. सामूहिकः ६८५. सखिप्राप्तः २७५ ७११. सायंप्रातिकः ६८६. सखिप्रियः २७५ /७१२. सार्वपौरुषम् २८६ ४१० ४७७ ४५२ ५३३ ५४१

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