Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 750
________________ ७०८ ५५७. मारीचः ५५८. मार्गं मांसम् ५५९. मार्गिकः ५६०. मार्दङ्गिकपाणविकम् ३७२ ५८६. रथ्याः ४५२ ५८७. रक्षा २२९ |५८८. रागः ३०१ ५८९. राजः ४९५ ५९०. राजगतः ३३३ ५९१. राजदन्तः २६८ ५९२. राजपुरुष: २४१ |५९३ राजवत् २६८ | ५९४. राजसंमितः ५६१. माशब्दिकः ५६२. माषकुम्भवापेन ५६३. मासजातः ५६४. मासतमः ५६५. मासप्रमितः ५६६. मुखकामः मुद्गपर्णी ५६७. ५६८. मूर्धशिखः ५६९. मृदङ्गशिल्पम् ५७०. मैत्रेयः ५७१ यतः ५७२. यत्र ५७३. यथाकामी ५७४. यथाददाति ५७५. यथाशक्ति ५७६. यवनानी ५७७. यवानी ५७८. याज्ञिककितवः कातन्त्रव्याकरणम् ५७९. यावनी ५८०. युक्तार्थः ५८१. युक्तार्थानि ५८२. युञ्ज ४३० ५८३. यूकालिख्ये ४३८ ५८४. योगः ४५१ ५८५. रक्तविकारः ५०५ ५९७. रूपम् ५०८ ५९८. रौचनिकम् ४५४ ५९५. राजहत : ५४२ ५९६. रिपुस्कन्धघृष्टचक्राय ४७७ |५९९. लब्धसत्ताकम् ५२३ ६०० लालाटिक: ३५८ | ६०१. २३९ | ६०२. लाक्षिकम् लिङ्गम् २३९ | ६०३. लूनयवम् २९० ६०४. लौहित्यायनी २३९ | ६०५. लौहेश: ३७२ ४४१ २०० ४६५, ४६७ ४१ २५४ ६०६. वचनः २५५ | ६०७. वत्सीयो गोधुक् २१२ ६०८. वधव्यः ४३८ ४२३ २८० ३२७, ३५६ ३२६ ४६८ ४५९ ३२८ ३५६ ५४ ४३९, ४४२ ८३ ४५२ ४३९, ४४२ २३७ ३६१ २४३ ३८६, ३८७ १९९ ४६२ ४६४, ५३६

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