Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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६७२
कातन्त्रव्याकरणम्
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४०३. न त्वा बुषाय मन्ये १५८ ४२९. पञ्चमः ४०४. नदी २४७, २५० ४३०. पञ्चमभार्या ४०५. नदीघोषः
३२६ ४३१. पञ्चमीभार्यः ३८८ ४०६. नन्दिता
२१६ ४३२. पञ्चमीमानिनी ४०७. नमस्कर्तुम् ४१३ ४३३. पञ्चमीयते
३८८ ४०८. नमो देवेभ्यः १६१ ४३४. पञ्चालाः ४०९. नरकपतितः ३२६ ४३५. पञ्चाशः ५३१,५३२ ४१०. नवतितमः
४९९ ४३६. पट्वी ४११. नाडायनः
४२९ ४३७. पत्ये शेते ४१२. नानात्वम्
४७६ ४३८. पदकक्रमकम् ३७५ ४१३. नाव्यम् ___४६१, ५३९ ४३९. पयस्वान् ४१४. निःषमम्
३६८ ४४०. पयस्वी ४१५. निर्मक्षिकम् ३६४ ४४१. परशुना छिनत्ति ४१६. नीचैः १२६ ४४२. परारि
५१९ ४१७. नीरुक्
४०८ ४४३. परि त्रिगर्तेभ्यो वृष्टो देवः १३८ ४१८. नीलोत्पलम् २७४, ३१९ ४४४. परीतत्
४०८ ४१९. पक्तये व्रजति १६७ ४४५. परुत्
५१९ ४२०. पचतितमाम् ५२६ ४४६. परेद्यवि ४२१. पचतितराम् ५२६ ४४७. पर्यध्ययनः ४२२. पचन्ती
२४७ ४४८. पर्वणा ४२३. पञ्चकपाल ओदनः ३२३ ४४९. पर्वतमनु वसिता सेना १५२ ४२४. पञ्चकाः शकुनयः ३४३ ४५०. पर्वतवत् ४२५. पञ्चकेन पशून् क्रीणाति ७१ ४५१. पलम् ४२६. पञ्चगवधनः
३२४ ४५२. पलाशशातनम् ३२६ ४२७. पञ्चगवम्
३७९ ४५३. पशुना रुद्रं यजते ४२८. पञ्चपूली
३२४ ४५४. पाकाय व्रजति १६७
५५९
३२७
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१२६
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