Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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६६२. वृकभीतिः
६६३. वृकाद् भयम् ६६४. वृक्षं वृक्षमभितिष्ठति
६६५. वृक्षः
६६६. वृक्षमनु विद्योतते विद्युत् ६६७. वृक्षमभि विद्योतते विद्युत्
६६८. वृक्षवान्
६६९. वृक्षात् पर्णं पतति
६७०. वैनतेयः
परिशिष्टम् - ४
३२६ ६८८. शृङ्गच्छरो जायते
१३४ ६८९. शैवः
१५२ ६९०. शोभनभार्यः
१२६ ६९१. शौकरम्
१५२
६९२. शौचेयः
१५१
६९३. शौभ्रेयः
६९४ . शौल्कशालिकः
६९५ . श्राद्धाय निगल्हते
४८७
४०
६८६. शुक्लत्वम् ६८७. शुक्लता
४३२
६९६. श्रावणः
५५१ ६९७. षडाकृतिः
६७१. वैयसनः
६७२. वैयाकरणः
६७३. वैयुदयः
६७४. वैष्णपुरेयः
६७५. व्याघ्राद् बिभेति
६७६. शङ्किता
६७७. शतेन परिक्रीतः
६७८ . शरदि पुष्यन्ति सप्तच्छदाः १८४
६७९. शाकटिक :
४४७, ५५१
६९८. षण्णाम्
५५१ ६९९. षष्टितमः
४३३ ७००. षष्ठः
४० ७०१. सकण्टकः
२१६ ७०२. सकिखि
७१ ७०३. सखिप्राप्तः
७०४. सखिप्रियः
६७७
४५७ ७०५. सखी
६८०. शान्तिः
२१४ ७०६. सतृणम्
६८१. शार्ङ्गवेरिकः
४५७ ७०७. सद्य:
६८२. शालिभ्यः शुकान् वारयति ४५ ७०८. सपक्षकः ६८३. शालीयः ४६४ ७०९. सपुत्रकः ६८४. शिखया परिव्राजकमपश्यत् १७८ ७१०. सप्ततितमः ६८५. शीर्णम् २३१ ७११. समंपदाति
४७५ ७१२. समंभूमि
४७५ ७१३. समर्थो मल्लो मल्लाय
४१
४२१,४४७,५४३
३८५
४४७
४३२
४३३
४५८
१६५
४४७
२८५
२११,२१८
४९७, ४९९
४९३
३४३
३६५
२७९
२७९
२४८
३६५
५१९
३४३
३४३
४९७, ४९९
३६७
३६७
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