Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 718
________________ कातनयाकरणम् ३५४ ५४४ ३५८ ५३३ १२६ ६१०. राजपुरुषत्वम् ६११. राजपूजितः ६१२. राजवत् ६१३. राजहतः ६१४. राज्ञः ६१५. रात्र्यारूढाः ६१६. रावणस्येव रोक्ष्यन्ति ६१७. रुजन्ति चेतः ६१८. रुरुषतम् ६१९. रेफेण ६२०. रेवतिमित्रः ६२१. रोहिणिमित्रः ६२२. लज्जते ६२३. लज्जाः ६२४. लक्ष्मीवान् ६२५. वङ्गाः ६२६. वण्टिता ६२७. वत्साः ६२८. वत्सीयः ६२९. वधव्यः ६३०. वनान्तर्वसतिः ६३१. वरप्रदेया कन्या ६३२. वर्तमानसामीप्यम् ६३३. वशिष्ठाः ६३४. वषडिन्द्राय ६३५. वा ४७६ ६३६. वाक्श्लक्ष्णः ३२६ ३२६ ६३७. वाग्दृषदम् ४७१ ६३८. वानिपुणः ३२६ ३२६ ६३९. वाडव्यम् ४७८ २१८ ६४०. वाताय कपिला विद्युत् १६५ ३२६ ६४१. वात्स्यः ४२५ १९९ ६४२. वायसम् ४४७ २०० ६४३. वायुषु २२४ ३७५ ६४४. वाशिष्ठः २३१ ६४५. वासुदेवार्जुनौ ४०५ ६४६. विंशः ४०५ ६४७. विंशतितमः ४९५ २१८ ६४८. वितस्तिः २६ ६४९. विदुषी २४७ ४८७ ६५०. विदेहाः २१ २१ ६५१. विद्युत्वान् २१६ ६५२. विद्वद्गमनम् २८५ २६ ६५३. विषमम् ३६७ ४६४ ६५४. विषमेण धावति ४६८ ६५५. विषाणित्वम् ३२६ ६५६. विष्णुमित्रस्य संबन्धः १३५ ३२६ ६५७. विष्णुमित्राय गां धारयते ५७ ३२६ ६५८. विष्यः ४६१ २७ ६५९. वृकभयम् ३२६ १६१ ६६०. वृकभीः ३२६ १७ ६६१. वृकभीतः ४८७ ७१ ४७६ ३२६

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