Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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. परिशिष्टम् -४ ५५९. माणव्यम्
४७८ ५८४. यज्ञः ५६०. मातुः स्मरति १९५ ५८५. यज्ञदत्तस्य स्वम् ५६१. मातृकेण
२३१ ५८६. यज्ञदत्ताय स्वदते मोदकः ५७ ५६२. मातृस्मरणम् ३२६ ५८७. यतः ५६३. माद्रबाहेयः ५३८ ५८८. यत्र
५०९ ५६४. मायायी
४८८ ५८९. यथा ५६५. मायी ४८८ ५९०. यथाशक्ति
३६५ ५६६. मारीचिकम् ४५७ ५९१. यदत्र मां परि स्यात् १५२ ५६७. मार्गम्
४४७ ५९२. यदत्र मां प्रति स्यात् । १५२ ५६८. मार्दङ्गिकः ४५८ ५९३. यदा ५६९. मार्दङ्गिकपाणविकम् ३७५ ५९४. यवलु ५७०. मालभारिणी कन्या ४०५ ५९५. यवेभ्यो गां निषेधति ५७१. मालावान्
४८७ ५९६. यवेभ्यो गां रक्षति ५७२. मासदेयमृणम् ३२६ ५९७. यस्काः
२६ ५७३. मासपूर्वः ३२६ ५९८. याच्या
२१८ ५७४. मासप्रमितश्चन्द्रमाः ३२६ ५९९. युऔ २१४, २१६ ५७५. मासविकलः ३२६ ६००. युद्धाय संनह्यते १६५ ५७६. मासोनः ३२६ ६०१. यूकालिख्यम् ३७५ ५७७. मूत्राय संकल्पते यवागूः १६५ ६०२. यूपदारु
३२६ ५७८. मूत्राय संपद्यते यवागूः १६५ ६०३. यूपाय दारु
१६४ ५७९. मूर्खेण
२३१ ६०४. यौवतम् । ५८०. मूषिका २३५ ६०५. यौवतेयः
४३२ ५८१. मुहूर्तसुखम् ३२६ ६०६. रन्धनाय स्थाली ५८२. मृदुना धनुषा
६०७. राजता
२७२ शरान् क्षिपति ११४ ६०८. राजदन्तः
३२७ ५८३. मौञ्जायनः
४२९ ६०९. राजपुरुषः २७४,३२६
४४७
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