Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 720
________________ ६७८ कातन्वयाकरणम् २१ ३२६ १७ १६१ ७१४. समेन धावति ७१ ७३६. सूरमसाः ७१५. सलोमकः ३४३ ७३७. सूर्यत्वम् ४७६ ७१६. सरसिजम् ५३१, ५३२ ७३८. सेनानि २५३ ७१७. सपीषि २२५ ७३९. सोमपम् २५३ ७१८. सर्वतः ५०७ ७४०. सौपर्णेयः ४३२ ७१९. सर्वत्र ५०९ ७४१. सौवश्विः ५५१ ७२०. सर्वथा ५२२ ७४२. स्तनस्पर्शः ७२१. सर्वदा ५१४ ७४३. स्वः ७२२. सर्वरात्रकल्याणी ३२६ ७४४. स्वधा पितृभ्यः १६१ ७२३. सर्वेषाम् २२४ ७४५. स्वस्ति प्रजाभ्यः ७२४. साग्न्यधीते ३६५ ७४६. स्वाम्पि २१५, २१६ ७२५. साधुर्देवदत्तो मातरमभि १५२ ७४७. स्वाहा अग्नये ७२६. साहसिकश्चौरः ४५८ ७४८. हंसचक्रवाकम् ७२७. साहसिकः ४५८ ७४९. हरणम् ७२८. सुखदुःखम् ३७५ ७५०. हस्तः ७२९. सुखप्राप्तः ३२६ ७५१. हस्त्यश्वम् ३७५ ७३०. सुखापेतः ३२६ ७५२. हा पुत्र ! ७३१. सुक्षु २२५ ७५३. हारयति ११० ७३२. सुपीःषु २२५ ७५४. हारिद्रम् ४४७ ७३३. सुमद्रम् ३६४ ७५५. हिमवतो गङ्गा प्रभवति ७३४. सुरेश्वरः ३२६ ७५६. हे पुत्र ! १२८ ७३५. सुषमम् ३६७ ७५७. है पुत्राः! १६१ ३७५ २३१ १२६ १२८ ४१ १२८

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