Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
View full book text
________________
३५१ . दधिघृतम् ३५२. दर्पेण
३५३. दक्षिणपूर्वा
३५४. दक्षिणेन ग्रामम् ३५५. दात्राकर्णः
३५६. दात्रेण धान्यं लुनाति
३५७. दाधिकम्
३५८. दार्षदाः सक्तवः
३५९. दास्या आमयति
३६०. दाक्षिः
३६१. दाक्षी
३६२. दिग्गतः
३६३. दिवि देवाः
३६४. दिक्षु
३६५. दीर्घजङ्घः
३६६. दीर्घम्
३६७. दुःखापन्नः
३६८. दुःषमम्
३६९. दुर्गवधिकम्
३७०. देवदतत्यम्
परिशिष्टम् - ४
३५८
३७५ ३७७. देवदैत्यौ २३१ ३७८. देववद् भवन्तं पश्यामि ४७२
३५१ ३७९. दौवारिकः
४५८,५५१
१४५ ३८०. द्रोण:
१२६
४०८ ३८१. द्रौणेयः
५३४
७१ ३८२. द्विगुणाकर्णः
४०८
४५७ ३८३. द्वितीयः
४९०
४४७ ३८४. द्वित्रा:
३४३
२०१ ३८५. द्विद्रोणेन धान्यं क्रीणाति
७१
४०८
४५८
१२७
४०८
२२५
१७२
४१
३५४
३५७, ३७५
३२६
४०
१२८
२२४
३२६
१५७
१५७
१५८
४३५,५३४ ३८६. द्विविधाकर्णः
२४७ ३८७. द्विशौर्पिक:
२८५ ३८८. द्वौ
६६ ३८९. द्व्यङ्गुलाकर्णः
२२४
३९०. धनूंषि
३८५
३९१ . धनेन कुलम्
१२६ ३९२. धर्मात् प्रमाद्यति
३२६ ३९३. धवखदिरपलाशाः
३६८ ३९४. धवाश्वकर्णम्
३६४ ३९५. धान्यार्थः
४७६ ३९६. धावतोऽश्वात् पतति
४७२ ३९७. धिक् पुत्रौ
१३५ ३९८. धूर्षु
५७
२०९
१८०
३२६
३७१. देवदत्तवत् स्थूलः
३७२. देवदत्तस्य स्वामी
३७३. देवदत्तायं रोचते मोदक :
३७४. देवदत्तेन कृत्तम्
३७५. देवदत्तेन हन्यते
३७६. देवदेयं पुष्पम्
३९९. नखनिर्भिन्नः
४००. न त्वा तृणं मन्ये
४०१ . न त्वा तृणाय मन्ये
४०२. न त्वा बुषं मन्ये
६७१

Page Navigation
1 ... 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806