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नामचतुष्टया याये परमः समासपादः
३७५ वस्तुओं के एकत्र समूह या समुदाय को समाहार करते हैं, इसी का अवबोध कराने के लिए समाहार में एकवचन का विधान अन्वर्थक माना जाता है ।
समाहार समुदाय में प्रायः सभी लिङ्गवाले शब्दों का समावेश होता है । अतः 'सामान्ये नपुंसकम्' की तरह यहाँ भी नपुंसकलिङ्ग का विधान किया जाता है | पाणिनि का सूत्र है - "स नपुंसकम्" (अ० २/४ / १७) कातन्त्र में एकवद्भावविधान के लिए पृथक् सूत्र नहीं है, जबकि पाणिनि ने द्वन्द्व समास के एकवद्भाव के लिए १५ सूत्र बनाए हैं। उन्हें वृत्तिकार दुर्गसिंह ने आर्याच्छन्दों में निबद्ध किया है।
[रूपसिद्धि]
१. प्रत्यष्ठात् कठकालापम् | कठाश्च कालापाश्च, तेषां समाहारः । कठ + आम् + कालाप + आम् + सि । द्वन्द्व समास, विभक्तिलोप, एकवद्भाव, सिप्रत्यय, नपुंसकलिङ्ग, सिलोप तथा मु का आगम ।
२. उदगात् कठकोथुमम् । कठाश्च कौथुमाश्च, तेषां समाहारः । कठ + आम् + कौथुम + आम् + सि । पूर्ववत् समासादि ।
३-२३. अर्काश्वमेधम् । पदकक्रमकम् । आराशस्त्रि । गङ्गाशोणम् । कुरुकुरुक्षेत्रम् | मथुरापाटलिपुत्रम् । अहिनकुलम् । तक्षायस्कारम् । पाणिपादम् । मार्दङ्गिकपाणविकम् । हस्त्यश्वम् । यूकालिख्यम् । बदरामलकम् । प्लक्षन्यग्रोधम् । धवाश्वकर्णम् । कुशकाशम् । तिलमाषम् । रुरुपृषतम् । हंसचक्रवाकम् । दधिघृतम् । सुखदुःखम् ।
इन सभी शब्दरूपों में एकवद्भाव तथा नपुंसकलिङ्ग की प्रवृत्ति होती है । इनमें अनेक प्रकार के शब्दों का समावेश है। जैसे – वेदशाखाध्ययनकर्ता, यागवाचक अध्ययनविषय, नदी - देश - नगरवाचक, शाश्वतविरोधवाचक, शिल्पिवाचक | प्राणितूर्यसेनाङ्गवाचक, मृगपक्षिविशेषवाचक आदि ।। ३५३।
३५४. तथा द्विगोः [२/५/१७] [सूत्रार्थ] समाहारद्विगु में विहित एकत्व को भी नपुंसकलिङ्ग प्रवृत्त होता है ।।३५४।