________________
कातन्त्रव्याकरणम्
परवर्ती रहने पर नू की उपधा को दीर्घ, 'श्रेयान् महान् ' आदि सकारान्त-तकारान्त शब्दों में नू की उपधा को दीर्घ, पाणिनि के 'श्रेयस् - महत्' प्रातिपदिक तथा कातन्त्रकार के श्रेयन्स् – महन्त्, 'आपः - स्वाम्पि' इत्यादि नोपध - अनोपध 'अप्' शब्द में दीर्घ, ‘भवान् – सुस्रोताः’ इत्यादि अन्त्वन्त - असन्त शब्दों में दीर्घ, ‘दण्डी - वृत्रहा – अर्यमा’ इत्यादि में उपधादीर्घ, 'उशना - अनेहा' आदि में स् को अन् आदेश, पाणिनीय अनङ् आदेश का विधान, 'सखा' में इ को अन् आदेश तथा 'राखायौ - सखायः ' में इ को ऐ - आदेश ]
२३
२४. उकारादेश, औकारादेश, आकारादेश, नु- आगम, शन्तृङ् प्रत्यय में नकार का लोप, घ्- आदेश, औ- आदेश, आ- आदेश पृ०२५०-७०
[' द्युभ्याम् - घुषु' इत्यादि में वकार को उकारादेश, 'द्यौः, हे द्यौः ! ' में वकार को औकारादेश, ‘द्याम् - अतिद्याम्' में वकार को आकारादेश, 'युङ्, युञ्ज, युञ्जः' में नु-आगम, ‘ददत् - जाग्रत्' आदि शब्दस्थ शन्तृङ् प्रत्यय के नकार का लोप, ' तुदती - तुदन्ती, भाती - भान्ती' आदि में वैकल्पिक नकारलोप, 'वृत्रघ्नः- वृत्रघ्ना' आदि में ह् को घ् - आदेश, ‘गौः, गावौ, गावः' आदि में ओ को औ, 'गाम् गाः' में ओ को आ तथा 'पन्थाः - मन्थाः - ऋभुक्षा:' में इकार को आकारादेश ।' पथिन् - मथिन् - ऋभुक्षिन्' प्रातिपदिकों में पाणिनि द्वारा किए गए 'नू को आ इ को अ - थ् को न्थ' आदेशों में प्रक्रियागौरव ]
-
२५. अन् आदेश, इ - लोप, नलोप, अनुषङ्गलोप, अन् - लोप, उआदेश, नु - आगम, हस्वादेश, म् - आदेश, उ- आदेश
-
पृ०२७० - ९४ [' पन्थानौ - मन्थानौ' आदि में इ को अन् आदेश, 'पथः - मथः पथिकः' इत्यादि में इकार - नकारलोप, 'विदुषः - वैदुष्यम् - महत : - महत्ता' आदि में अनुषङ्ग ( नकार) - लोप, 'पुंसः - पौंस्नम् - पुंस्त्वम्' आदि में 'अन्' भाग का लोप, 'चतुरःचतुर्भिः- चतुर्थ:- चातुर्यम्, अनडुहः, अनडुह्यम्, अनडुही' आदि में वा को उ. ‘अनड्वान्’ में नु-आगम, 'हे प्रियचत्वः । हे अनड्वन् ! ' शब्दों में वा घटित आ को ह्रस्व, 'अमुष्मात्- अमुष्मिन्' आदि में द् को म् ' पेचुषः - पेचुषी -
-
आदेश,
-
-