________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें प्रथम पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सन् 1975 में भगवान् महावीर स्वामी की सवा नौ फुट ऊँची प्रतिमा की हुई थी। इसके लिये उस समय कारणवश एक छोटे से कमरे का ही निर्माण हो सका था। इस कमरे को हटाकर वर्तमान में भव्य कमल मन्दिर का निर्माण कार्य सम्पन्न हुआ है / इस पंचकल्याणक में चारित्र चक्रवर्ती 108 आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज के तृतीय पट्टाचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज विशाल संघ सहित एवं एलाचार्य श्री विद्यानंदजी व गणिनी आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी का सान्निध्य प्राप्त हुआ था। प्रतिष्ठाचार्य पं० श्री वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, सोलापुर निवासी थे। द्वितीय पंचकल्याणक 84 फुट ऊँचे सुमेरु पर्वत के 16 जिनबिम्बों का 29 अप्रैल से 3 मई 1979 तक आयोजित किया गया। इस पंचकल्याणक महोत्सव में आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज के शिष्य आचार्यकल्प श्री श्रेयांससागरजी महाराज का सान्निध्य एवं गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का सान्निध्य प्राप्त हुआ था। इस आयोजन के प्रतिष्ठाचार्य संहितासूरी ब० सूरजमल जी, बाबाजी निवाई थे। तृतीय पंचकल्याणक प्रतिष्ठा 28 अप्रैल 1985 से 2 मई 1985 तक सम्पन्न हुई। यह आयोजन जम्बूद्वीप के समस्त जिनबिम्बों के पंचकल्याणक का आयोजन था। यह समारोह राष्ट्रीय स्तर पर सम्पन्न हुआ। इसमें सानिध्य प्राप्त हुआ आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज के संघस्थ साधुगणों का एवं आ० श्री सुबाहुसागर जी तथा गणिनी आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी के संघ का। प्रतिष्ठाचार्य ब्र० सूरजमलजी बाबाजी थे। समारोह में भारतवर्ष के प्रत्येक प्रान्त से धर्मानुरागी बंधुओं ने भाग लिया तथा उ० प्र० सरकार का भी प्रशासन की ओर से अच्छा सहयोग रहा। उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नारायणदत्त तिवारी ने जम्बूद्वीप का उद्घाटन किया था। अन्य केन्द्रीय व उत्तरप्रदेश के मंत्रीगण व सांसद भी समारोह में उपस्थित हये थे। केन्द्रीय भारत सरकार के रक्षामंत्री श्री पी० वी० नरसिंहराव (वर्तमान प्रधानमंत्री) भी आयोजन में सम्मिलित हुये थे। - चतुर्थ पंचकल्याणक 6 मार्च से 11 मार्च 1987 तक सम्पन्न हुआ। इस महोत्सव में भगवान् पार्श्वनाथ व भगवान् नेमिनाथ की दो विशाल पद्मासन प्रतिमाओं का पंचकल्याणक महोत्सव हुआ। इस कार्यक्रम में आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज के विशाल संघ का सानिध्य तथा पू० गणिनी आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी के संघ का सानिध्य प्राप्त हुआ। इस प्रतिष्ठा के प्रतिष्ठाचार्य पं० श्री शिखरचंद जी भिण्ड थे। इसी शुभ अवसर पर सुमेरु पर्वत पर स्वर्ग कलशारोहण भी किया गया। मख्य अतिथि के रूप में माधव राव सिंधिया. केन्द्रीय रेल मन्त्री तथा श्री जे०के० जैन सांसद भी आये। ज्ञानज्योति प्रवर्तन 4 जून 1982 को लाल किला मैदान, दिल्ली से जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का प्रवर्तन तत्कालीनप्रधानमन्त्री स्व० श्रीमती इन्दिरा गांधी के करकमलों से हुआ था। निरंतर 1045 दिनों तक इस ज्ञानज्योति का प्रवर्तन सम्पूर्ण भारतवर्ष के नगर-नगर में हुआ, जिससे अहिंसा, चारित्र निर्माण एवं विश्व-बन्धुत्व का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ। इस प्रवर्तन में अनेक प्रान्तों के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, सांसद, कमिश्नर, डी.एम., एस.डी.एम. आदि अनेक राजकीय अधिकारियों का सान्निध्य प्राप्त हुआ। दिगंबर जैन आचार्यों, मुनियों, आर्यिकाओं और भट्टारकों का भी स्थान-स्थान पर आशीर्वाद व सान्निध्य प्राप्त (27)