Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिभुजगारसामित्तं * सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं भुजगार-अप्पदरविहत्तिो को होदि ?
१३. सुगममेदं पुच्छासुत्तं । • * अण्णदरो णेरइयो तिरिक्खो मणुरुसो देवो वा ।
६१४. त्ति वत्तव्वं । भुजगारो सम्मादिट्ठीणं चेव । अप्पदरं पुण सम्मादिहिस्स मिच्छादिहिस्स वा।
*अवहिदविहत्तिो को होदि ? ६ १५. सुगमभेदं ।
* पुव्वुप्पण्णादो समत्तादो समयुत्तरमिच्छत्तेण से काले सम्मत् पडिवरुणो सो अवहिदविहत्तियो।
१६. तं जहो-सम्मत्तसंतकम्म पेक्खिद्ण समयुत्तरमिच्छत्तद्विदिसंतकम्मिएण सम्मत्त गहिदे तग्गहणपढमसमए चेव समयुत्तरमिच्छत्तहिदिसंतकम्मे सम्मत्त-सम्म।मिच्छत्तसरूवेण संकते सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमवद्विदविहत्ती होदि । कुदो १ चरिमसमयमिच्छाइट्ठिस्स सम्मत्तहिदिसतेण पढमसमयसम्माइटिसम्मत्तद्विदिसंतस्स समाणत्तादो । बन्ध करता है या विशुद्ध परिणामोंके निमित्तसे जिसने मिथ्यात्व की स्थितिका घात किया है उस मिथ्यादृष्टिके और सम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्ति होती है। किन्तु मिथ्यात्वकी अवक्तव्यस्थितिविभक्ति नहीं होती, क्योंकि जिसने मिथ्यात्वका क्षय कर दिया है उसके पुनः मिथ्यात्वकी उत्पत्ति नहीं होती। ___* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार और अल्पतरस्थितिविभक्तिका स्वामी कौन है ?
६ १३. यह पृच्छासूत्र सुगम है।
* कोई नारकी, तियञ्च, मनुष्य और देव सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको भुजगार और अल्पतर स्थितिविभक्तिका स्वामी है।
६१४. ऐसा कहना चाहिए । भुजगार भंग सम्यग्दृष्टियोंके ही होता है। परन्तु अल्पतर भंग सम्यग्दृष्टिके भी होता है और मिथ्यादृष्टिके भी होता है।
* अवस्थित विभक्तिका स्वामी कौन है। ६ १५. यह सूत्र सुगम है।
* पहले उत्पन्न हुई सम्यक्त्व प्रकृतिसे एक समय अधिक स्थितिवाले मिथ्यात्वके साथ विद्यमान कोई एक जीव यदि तदनन्तर समयमें सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है तो वह अवस्थितिविभक्तिका स्वामी है।
$ १६. खुलासा इस प्रकार है-जिस मिथ्यादृष्टि जीवके सत्तामें विद्यमान मिथ्यात्वकी स्थिति सत्तामें विद्यमान सम्यक्त्वकी स्थितिसे एक समय अधिक है वह जीव जब दूसरे समयमें सम्यक्त्वको ग्रहण करता है तब उसके सम्यक्त्वके ग्रहण करनेके प्रथम समयमें ही मिथ्यात्वकी एक समय अधिक स्थिति सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वरूपसे संक्रान्त हो जाती है, अतः उसके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्ति होती है। क्योंकि मिथ्यादृष्टिके अन्तिम समयमें
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