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शरण आये हुये रोगियों की निस्पृह होकर सेवा शुश्रुपा करना और सेवा के लिये चाह रात हो या दिन सदा तत्पर रहना उनकी दयालु प्रकृति दर्शाते हैं रोगियों की हाय सुनने पर श्री अकसर डाक्टरों का प्रथम सवाल फीस का ही होता है. निर्धन के रक्षक बहुत कम होते हैं परः डा. हरकचंदजी ने, कभी रोगी से फीस का सवाल नहीं किया. भोजन का समय हो अथवा आराम का रात हो या दिन रोगी की पुकार सुनते ही तैयारः उनके इस सद् व्यवहार के कारण आज भी उन नगरों में कि जिनमें इनको. अपने गुण प्रकट करने का अवसर मिला इनका यशोगान होरहा है। .:. . . . . . . पर काल विकराल ने उन्हें अपने गुण प्रगट करने को विशेष समय नहीं दिया उनको अपने न्यायोपार्जित द्रव्य से अपने ही हाथों जाति तथा देश सेवा करने का अवसर नहीं दिया विद्यार्थी अवस्था समाप्त करने के केवलः ११ वर्ष के ही पश्चात् जीवन संग्राम में घुसते ही सेवा के योग्य होते ही उनको काल विकरोल ने उठा लिया. उनका प्राइवेट जीवन बहुत ही सादा था यह उनकी तसवीर से ही प्रकट होता है. यह उनकी आंतरिक इच्छा थी कि धन.का सदुपयोग हो और उनके धन से उचित लाभ मिले उनके पिताने भी उनके विचारों की अनुमो. दना की और अपने प्रिय पुत्र के स्मार्थ यह कर्म ग्रन्थ तथा