Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 64
________________ (४६ ) हो कोहो तिणसलया कट्ठाद्विन, सेलत्थंभो वमोमाणो ॥ १६ ॥ क्रोध के ४ भेद । १ संज्वलन क्रोध-पानी में रेखा बँची जावे तो तत्काल । मिट जाता है ऐसे ही जो क्रोध तत्काल शांत होजावे उसको संज्वलन क्रोध कहते हैं ऐसा क्रोध प्रायः साधु मुनिराज भी अपने शिष्यों के हित शिक्षार्थ किया करते है। २ प्रत्याख्यानी क्रोध-रेती में रेखा बँची जाने तो वो वायु से शीध्रही मिट जाती है ऐसे ही जो क्रोध समझाने पर वा क्षमा मांगने पर अथवा उचित दंड देने के पश्चात् शीघ्र ही मिट जाये उसको प्रत्याख्यानी क्रोध कहते हैं ऐसा क्रोध प्रायः श्रावक को होता है जो ज्ञान द्वारा विचार कर शीघ्र ही क्रोध का त्याग कर देता है। ३ अप्रत्याख्यानी क्रोध- तालाव की मिट्टी में कहीं रेखा ( दरार ) होगई हो तो वो वर्षा होने पर मिलजाती है ऐसे ही क्रोध वश बदला लेकर वा अल्प समय के पश्चात् यदि क्रोध त्याग दिया जावे तो उसको अप्रत्याख्यानी क्रोध कहते हैं जैसा कि जिसको क्रोध के त्याग का व्रत नहीं है किन्तु उसको

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