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अनुचित समझने पर त्याग कर देता है अर्थात् अविरति का. क्रोध समझना चाहिये ।
. ४ अनंतानुबंधी क्रोध - यदि किसी कारण से पर्वत में दरार होगई हो तो वो कभी नहीं मिटती है ऐसे ही जो क्रोध कभी नहीं शांत होता है उसको अनावधी क्रोध कहते हैं ऐसा air faarata को होता है क्योंकि वो मिध्यात्व के कारण . ही से उस क्रोध को शांत नहीं कर सक्ता हैं ।
मान का स्वरूप
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संज्वलन मान बैत के ऊपर की छाल जैसे शीघ्र नम जाती है वैसे ही जिस मान में उपदेश से वा अवसर पड़ने पर विनय उत्पन्न होजावे उसको संज्वलन मान कहते हैं।
'प्रत्याख्यानी मान- सुखा काष्ट तेल लगाने पर जैसे नम जाता है वैसे ही जिस मान में अधिक समझाने पर विनय उत्पन्न हो. जावे उसको प्रत्याख्यानी मान कहते हैं ।
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श्रमत्याख्यानी मान–हड्डी, अत्यंत प्रयोगादि करने पर, जैसे नम जाती है वैसे ही जिस मान में अनेक कष्ट पाकर सपझने पर विनय उत्पन्न हो जावे उसको अमत्याख्यानी मान कहते हैं ।
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अनंतानुबंधी मान - पत्थर का स्थंभ अनेक प्रयोगादि करने