Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 129
________________ (१११) होने के कारण और परदारा गमन आदि व्यसनों से अरक्त होने श्रादि अनेक कारणों से युगलिकों को देवायु ही बंधन होता है. शुद्ध ब्रह्मचर्यादि पालन से मिथ्यात्वी को भी देवायु वंधन होता है. _ नाम कर्म के बंधन के मुख्य कारण. निष्कपट, सत्य प्रियता (सचा माप और तोल रक्खा) ऋद्धि, रस, शाता इन ३ गौरवों से रहित, पापभीरू, परोपकारी लोक प्रिय और तमादि गुण युक्त होने से शुभ नाम कर्मों का वंधन होता है. __ अप्रमत्त चारित्र पालन करने से आहारकद्विक नाम कर्मों का बंधन होता है. __अरिहंतादि २० पदों को शास्त्रानुसार यथाविधि आराधन करने से तीर्थंकर नाम कर्म का बंधन होता है. : उपरोक्त गुणों से विरुद्ध अवगुणों से ३४ अशुभ नाम कमाँ का बंधन होता है कुल ६७ प्रकृति का वंध बताया. - गुणपेही मय रहियो,अज्झयणज्झा। वणारुइ निचं ॥ पकुणइ जिणाइ भत्तो, उच्चनिनं ई श्ररहाभो ॥ ५६ ॥ .. . : .. . __ . . गोत्र कर्म बंधन के मुख्य कारण ।।

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