Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 131
________________ प्रत्येक गृहस्थी को अष्ट द्रव्यम नित्य प्रभु की पूजा करना चाहिये प्रभु पूजादि शुभ कार्यों में अष्ट द्रव्यादि के उपयोग से अशुभ कर्म बंधन नहीं होता है किंतु शुभ कोपार्जन होता है जैसे कि औपध कटु हो तो भी उपयोग का फल शुभ होता है. जिनने समय पर्यत गृहस्थ संबंधी कार्यों का त्याग कर प्रभु पूजा प्रभु गुण ग्राम आदि में समय का सदुपयोग किया जाता है उतना ही अंतराय कमां का नाश होता है और सभ्य. ज्ञान सम्यक् दर्शन और सम्यक चारित्र की प्राप्ति होती है। किंतु यदि कोई गृहस्थ सर्व द्रव्यों का त्याग कर साधु धर्म अंगीकार करले नो यद्यपि वो द्रव्यादि के त्यागी होने से प्रभु की द्रव्य पूजा का अधिकारी नहीं है तथापि उसके लिये भाव पूजा परम आवश्यकीय है. इस कर्म विषाक नाम प्रथम कर्म ग्रन्थ की श्रीमान् देवेंद्रस्वरि महाराज ने रचना की है. कर्म विपाक नाम प्रथम कर्म ग्रन्थ समाप्त / जीयावीरजिनेवरो गुणनिधिः कर्मस्वरूपो वद् / देवेंद्रो मुनिनायको, बरमतिर्गाथाप्रणेता तथा // मान्यो मोहन साधुरथ, कथनः पन्यास हो मुनि / . माणिक्य नयतात्सदैव सुपथानृणांहिते चिंतनात् / /

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