Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 1
________________ प्रस्तावना. यद्यपि पाश्चात्य विद्वान यह स्वीकार करचुके हैं कि बौद्ध धर्म से जिसको कि आज केवल चौवीस शताब्दियां ही हुई जैनधर्म अधिक प्राचीन है तथापि आजकल के छोटे २ इतिहास आदि पुस्तकों में तथा साधारण पुस्तकों में बौद्ध धर्म सम्बन्धी अनेक बातें देखीं जातीं हैं किंतु जैनधर्म सम्बन्धी बहुत ही कम देखने में आती हैं. इसके अतिरिक्त बौद्ध सिद्धांत से परिचित कितने ही विद्वान मिलेंगे किन्तु जैन सिद्धांत से परिचित जैनेतर तो दूर रहे स्वयं जैन लोगों में भी भली प्रकार से समझने वाले कम देखे जाते हैं इसका कारण यही कहा जासता है कि प्रथम तो बौद्ध साहित्य का वर्त्तमान काल की प्रायः सर्व भाषाओं में अधिक मंचार है किन्तु जैन साहित्य का संसार की वर्तमान काल की प्रचलित भाषाओं में यथोचित प्रचार नहीं है द्वितीय संसार में वौद्धों की संख्या अब भी ४० करोड़ है किन्तु जैनियों की संख्या केवल साढे बारह लाख ही रद्द गई है । जिनमें भी निज धर्म का साधारण ज्ञान रखने वाले भी इने गिने ही देख पड़ते हैं. एक समाज का स्वयं अपने ही धर्म सिद्धांतों से अनभिज्ञ होना उसके लिये कितना लज्जा का विषय है। आज इसी कारण भारतवर्ष में जैनधर्म पर अनेक तर्क विशेषतया कुतर्क होते हैं कोई “ जैनियों की अहिंसा" • 1.Page Navigation
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