Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 4
________________ .( ४ ) शुभ कर्ता और प्रलय कर्ता इत्यादि रूप से जगत्का कर्ता हत्ती ईश्वर को मानते हैं. (२) किन्तु जैनधर्म सूक्ष्म दृष्टिपूर्वक प्रवल प्रमाणों द्वाग सिद्ध करता है कि ईश्वर तो परम पवित्र निदूषण रागद्वेष रहित सर्वज्ञ वीतराग है उस ( ईश्वर ) को जगत्का कर्त्ता हत्ती तथा शुभाशुभ कर्म फलदाता मानना ईश्वरत्व को दुपित करना है ईश्वरत्व के परम उत्तम गुणों से ईश्वर को रहित वतलाना और ईश्वर की निदूषणता में कलंक लगाना है तो जगत्कर्तृत्व के विषय में जैन धर्म का क्या मत है ? - जैन धर्म का मत है कि जगत् अनादि है इस जड़ और धेतन रूपी संसार के जितने परिवर्तन होने हैं सर्व काल, स्वभाव, कर्म, पुरुषार्थ और निनि के ( द्वारा ) अनुसार ही होते हैं. ' संसार में जो अनन्त जीव हैं प्रत्येक जीव कभी किसी कारण से अपने पूर्व कर्मका फल भोग कर उस कर्म से रहित होते हैं तो कभी नवीन कर्म उपार्जित कर लेते हैं 'अनादि काल से इस ही प्रकार सर्व जीव कर्म लिप्त है संसार में भ्रमण का जीव कभी कर्म रहित दशाम नहीं रहते ज्ञानकी, दर्शनकी आयु की न्यूनाधिक प्राप्ति होना उच्च नीच कुल में उत्पन्न होना सुख दुस्खादि की प्राप्ति इत्यादि सर्व पूर्व संचित कर्मों ही का

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