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(१३) : २ अनदर श्रुत-किसी के श्वास, डकार, छींक, खांसी आदि से जो प्राणी का ज्ञान व पहचान होती है उसको अनपर श्रुत कहते हैं। - ६ संझी श्रुत-दीर्घकालिकीसंज्ञा वाले जो पंचेंद्रिय तियेच और मनुष्यादि गर्भज प्राणी हैं उनके ज्ञान को संज्ञी भुत कहते हैं।
जो दृष्टि वाद संज्ञा वाले चौदह पूर्व के ज्ञानी सर्वश्रुत के पारंगामी अंमंमादी मुनि श्रुत केवली होते हैं उनके ज्ञान को उत्कृष्ट संज्ञाश्रुत कहते हैं उसका ज्ञान विशेष आगे बतायेंगे।
४ असंज्ञी श्रुत-हेतुउपदेशिकीसंज्ञा वाले मन रहित माणी के ज्ञान को असंज्ञी श्रुत कहते हैं एकद्रिय, वेंद्रिय, तेंद्रिय, चतुरिंद्रिय और सन्मूर्छिम पंचेंद्रिय जो मनरहित प्राणी हैं उनको केवल अपने आहार, भय आदि की संज्ञा है उनका ज्ञान बहुत अल्प है वे धर्म अंगीकार करने को भी अयोग्य होते हैं इसलिये जनको असंही में लिया गया है। .. ५ सम्यक् श्रुत--सर्वज्ञ वीतराग भापित तत्वज्ञान को सः मझने और मानने से जो ज्ञान हो इसका नाम सम्यक् श्रुत है। - दीर्घ कालि की संज्ञा-संज्ञी पंचेन्द्री (मन वाले ) प्राणी का ज्ञान।
४ हेतु उपदेशि की संज्ञा-प्रसंजी (विना मन के ) प्राणी का अल्प ज्ञान।