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अथवा कुगुरु कुदेव का जो अस्वीकार और सुंगुरु सुदैव का स्वीकार हो उसको व्यवहारं सम्यक्त्व कहते हैं ।
सम्यक्त्व के विशेष प्रचलित तीन भेद यह हैं ।
१ क्षायिक सम्यक्त्व - अनंतानुबंधी क्रोधादि ४ कषाय और दर्शन मोहनीय की ३ प्रकृति इन सात प्रकृतियों के क्षय होने पर जो तत्वरुचि होती है उसको क्षायिक सम्यक्त्व कहते हैं ।
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२ उपशम सम्यक्त्व - उन्हीं सात प्रकृतियों के शांत होने अर्थात् दवा देने का नाम उपशम सम्यक्त्व हैं |
३ क्षायोपशमिक सम्यक्त्व जो उन्हीं सात प्रकृतियों के उदय में आने पर जो उसका नाश किया हो और उदय में न आने पर जो शेष कायम भी रहा हो तो उसके क्षायिको
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पशमिक सम्यक्त्व कहते हैं - तत्पश्चात् सम्यक्त्व मोहनीय के रुक जाने से जो तत्व रुचि प्रगट होती है उसको वेदक सम्यक्त्व कहते हैं उपशम में इतना विशेष है कि मिथ्यात्व प्रदेश का भी यहां उदय नहीं और क्षय उपशम में रसोदय मिथ्यात्व का उदय नहीं प्रदेश का उदय हैं.
. वेदक सम्यक्त्व और क्षायोपशमिक: सम्यक्त्व दोनों एक ही है इसलिये इसको अलग भेद नहीं समझा जाता है । : :
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... इस प्रकार सम्यक्त्व के ३. भेद हुवे जिनोक्त क्रिया को