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३.मिथ्यात्व मोहनीय । मिथ्यात्व मोहनीय के उदय से केवली भाषित तत्वज्ञान पर श्रद्धा (विश्वास ) के स्थान में स्वयं अश्रद्धा रखता है और दूसरों को भी अश्रद्धा कराता है जैसे किसी ने धतूरा खा रक्खा हो तो सुवर्ण नहीं हो वह उसको भी सुवर्ण समझता है उसी तरह मिथ्यात्व मोहनीय के उदय से कुगुरु को सुगुरु, कुदेव को सुदेव और कुधर्म को सुधर्म मानता है।
मिथ्यात्व के दश भेद । १-साधु को असाधु समझना और मानना २-असाधु को साधु मानना . '३-क्षमा आदि धर्म को अधर्म मानना ।
४-हिंसा आदि अधर्म को धर्म मानना । "५-अंजीव को जीव मानना |
६-जीवको अजीवं मानना '७-उन्मार्ग को सुमार्ग मानना
८-सुमार्ग को उन्मार्ग मानना 'ई-कर्मरहित को कर्म सहित मानना १०-कर्मसहित को कर्मरहित मानना
सोलस कसाय नवनो कसाय दुविहं चरित्त,