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(५७) पिंड प्रकृतियों के पृथक् २ ६५ भेद, प्रत्येक प्रकृतियों के भेद और त्रस स्थावर प्रकृतियों के २० भेद इस प्रकार सब मिलकर नाम कर्म के ६३ भेद होते है। - और यदि पिंड प्रकृतियों के भेद ७५ गिने जावे तो नाम कर्म के १०३ भेद भी होते हैं।
तस चउ थिर छक अथिर छक्क सुह, मतिग थावर चउकं । सुभग तिगाइ विभासा तयाइ संखाहि पयंडीहि ॥ २८ ॥ वगणचउ अगुरु लहु चउं, तस्साइदुति चउर छक मिच्चाइ। इय अन्नांवि विभासा, तयाइ संखाहि पयडीहिं ॥ २६ ॥.. ..प्रसंगोपात विभासा अर्थात् कुंछ संज्ञाएँ समझा देते हैं क्योंकि ये संज्ञाएं आगे बहुत काम में आवेगी। .....
स चतुष्क-प्रथम ४ पुण्य प्रकृतियां अर्थात् त्रस, वादर, पर्याप्त और प्रत्येक इन चारों को मिलाकर बस चतुष्क कहते हैं। *. "स्थिर घटक अन्तिम ६पुण्य प्रकृतियां अर्थात् स्थिर, शुभ, सौभाग्य, सुस्वर, आदेय और यश इन छः को मिलाकर स्थिर पटक कहते हैं।
.:.:...: . अस्थिर पटक-अन्तिम छै पाप प्रकृतियों अर्थात् अस्थिर