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(६७) भी दाता के पास होते हुवे भी कुछ लाभ प्राप्त न हो उसको लाभांतराय कर्म कहते हैं. '
३ भोगांतराय कर्म-जिस कर्म के उदय से भोगकी वस्तुएं भागने का त्याग न होते हुवे भी न भोगी जासकें उसको भोगांतराय कर्म कहते है.
भोग की वस्तुएं उन्हें कहते हैं जो केवल एकवार भोगी जा सक्ती है जैसे आहार जल पुष्पादि .
४ उप भोगांतराय कर्म-जिस कर्म के उदय से उपभोग की वस्तुओं के भोगने का त्याग न होते हुवे भी भोग न सके उसको उपभोगांतराय कर्म कहते हैं.
. उपभोगकी वस्तुएं उन्हें कहते हैं जो अधिकवार भोगी जा सकें जैसे पलंग कपड़े आदि.
५ वीर्यांतराय कर्म-इनके तीन भेद हैं। . अ-बालवीयांतराय कर्म.
जिस कर्म के उदय से सांसारिक क्रिया में समर्थ होते हुवे भी इच्लित भोग न कर सके.उसको वालवीर्यातराय कर्म कहते हैं. ...व-पंडित वीर्यातराय कर्य.
जिस कर्म के उदय से सम्यग्दृष्टि साधु होते हुवे भी मोक्षार्थ क्रियाएं न कर सके उस कर्म को पंडित वीर्यातराम कर्म कहते हैं,