Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 114
________________ (६६) कलाल आदि नीच जाति में उत्पन्न होता है उसको नीचर्गोत्र कर्म कहते हैं जैसे पवित्र जलादि के उपयोग के लिये जो मट्टी के घड़े कुंभकार वनाता है उनको लेजाकर लोग कलशादि की स्थापना करते हैं और उनपर अक्षत पुष्पादि चढाते है किन्तु जो घड़े मदिरा आदि के लिये बनाये जाते हैं उनमें मदिरा नहीं होते हुवे भी उनकी कोई पूजा नहीं करते हैं इस ही प्रकार उच्चजाति कुलमें उत्पन्न हुवे जीवों को तो वैसे ही -सन्मान प्राप्त हो जाता है किन्तु नीच जाति कुल में उत्पन्न हुने जीवों में बुद्धि लक्ष्मी आदि होते हुवे भी जाति कुल की अपेक्षा से उनका कम सन्मान होता है। अंतराय कर्म के ५ भेदः जिस कर्म के उदय से जीव के अपनी शक्तियों को उपयोग में लाने में अंतराय होती है उसको अन्तराय कर्म कहते . हैं इसके ५ भेद हैं. १ दानांतराय-जिस कर्म के उदय से जीव के पास उचित . द्रव्य होते हुवे भी शुभ पात्र होते हुवे भी और देने की इच्छा होते हुवे भी दान नहीं कर सकता है उसको दानांतराय कर्म कहते हैं. २ लाभांतराय कर्म-जिस कर्म के उदय से व्यापार कुशलता होते हुवे भी दाता का संयोग होते हवे भी इच्छित वस्त

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