Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 128
________________ ( ११० ) से, असत्य दोष आरोपित करने से आर्त्तध्यान करने से पापों का प्रायश्चित न करने से मनमें शल्य रखने से तीव्रमोह से तिर्यंच आयु कर्मों का बंधन होता है. अल्प कषाय दानरुचि, क्षमा, सरलता, निर्लोभता, निष्कपट आदि उत्तम गुणों से और सद्गुरु से सद्बोध पाने से मनुष्य आयु कर्मों का बंधन होता है.: धर्म प्रेमी होने से धर्म सहायक होने से बाल तपस्वी होने से देशविरति अर्थात् श्रावक धर्म पालन करने से और सराग संयमी चारित्र पालने से देव आयु का बंधन होता है. अ- अकाम निर्जरा से अग्नि में जलते समय वा कुए तालाव में गिरकर मरते समय शुभ भावना रहने से व्यंतरादि देव आयु बंधन होता है. " · व-वाल तप में क्रोधादि परिणाम रखने से, मिथ्यात्वावस्था में तप करने से इंद्रियों को वश में रखते हुवे भी मनमें संसार वासना रहने से भुवनपति देव आयु बंधन होता है. क-धर्म क्रियाएँ करते हुवे भी धर्माचार्य से द्वेप रखने से किलविशिक ( महतर ) देव आयु का बंधन होता है. अत्युत्तम चारित्र ( सर्व विरति धर्म ) पालन करने से वैमानिक और ज्योतिषी देवायु का बंधन होता है. युगलिक. अविरति होते हुवे भी उन में तीव्र कामोदय न

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