Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 126
________________ . . ( १०८ ) का स्पर्श कचरण मोह, कसाय हासाई विसय विवस मेणा । बंध निरयाउ महारंभ परिग्गह रत्र रुदो ॥ ५७ ॥ " *!! कषायों से, हास्यादि से, और ५ इंद्रियों के विषयों में लीन होने से २ प्रकार के चारित्र मोहनीय कर्मों का बंधन होता है. अनंतानुबंधी कपायों से सोलह, अप्रत्याख्यानी कपायों से बारह, प्रत्याख्यानी कपायों से आठ, और संज्वलन कपा यों से चार, प्रकार के मोहनीय कर्मों का बंधन होता है.... हास्यादि कुचेष्टा से हास्य मोहनीय कर्मों का बंधन होता है. विचित्र क्रीडाऐं देखने से क्रीडा रस के वचन बोलने से दूसरों को वश में करने को कुमंत्र पढ़ने से कुकृत्यों से रति मोहनीय कर्म का बंधन होता है. परस्पर क्लेश कराक " 3, झगडा कराने से अरति मोहनीय 4 कर्म का बंधन होता है. अन्य जीवों को भय दिखलाने से निर्दय परिणामों के कारण भयं परिणामी कर्मों का बंधन होता है. असत्य कहकर जीवों को शोक चिंता में डालने से शोक मोहनीय कर्मों का बंधन होता है. : धार्मिक पुरुषों की दुगंछा करने से वा निंदा करने से जुगुप्सा मोहनीय कर्मों का बंधन होता है. :

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