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१०६) आदि का स्पर्श करने से, ज्ञान द्रव्य भक्षण करने से का विनाश करने से अथवा भक्षण करने वाले और विनाश करने वालों की उपेक्षा करने से ज्ञाना वरणीय कर्मों का बंधन होता है। :: ____ उपरोक्त कारणों ही से दर्शनावरणीय कर्मों का बंधन होता है किन्तु विशेषता यह होती है कि ज्ञानियों और विद्यार्थियों की इद्रियों के सदुपयोग में विघ्न करने से वा विनाश का प्र. यत्न करने से, और तत्वज्ञान के ग्रन्थों पर द्वेषभाव करने से भी दर्शना वरणीय कर्मों का बंधन होता है ।... ......
गुरुभत्तिखंति करुणा, वयजोग कसाय विजय दाजुभो। दृढ धम्माई अंज्झइ, सायमसाय विवज्भया ।। ... ... ... ... .. .. ... ..... वेदनीय कर्म बंधन, के मुख्य कारण । ...... ..गुरु अर्थात् धर्माचार्य, विद्यागुरु, माता पिता वा बड़े भाई अपने से अधिक आयु, विद्या, और बुद्धि वालों की सेवा करने से चमा भाव रखने से दयामय स्वभाव रखने से, महाव्रत ( साधु व्रत) अणुव्रत (श्रावक व्रतः) पालन करने से, दश विधि साधु समाचारी:(.आचारादि.). पालन करने से, कषायों का जय करने से, यथाशक्ति दान करने से धर्म में स्थिरता रखने से और कोमल परिणाम से शाता वेदनीय कर्मों का बंधन होता है।