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(१०७) . उपरोक्त (शाता वेदनीय के ) गुणों से विरुद्ध वर्ताव करने से, कठोर प्रकृति रखने से, निर्दय स्वभाव रखने से, और अन्य प्राणियों को दुख देने आदि से अशाता वेदनीय कर्मों का बंधन होता है.. ____ व्यवहार में इनको पुण्य पाप कहते हैं पापों का फल दुःख मिलता है और पुण्य का फल सुख मिलता है.
उमग्ग देसणामग्ग, नासणा देव दव्व हरणेहिं दसण मोहं जिण मुणि, चेइअ संघाइ पडिणीत्रों ॥५६॥
. . मोहनीय कर्म बंधन के मुख्य कारण। .
अनजान से वा जानकर वा कदाग्रह से एकांत पत्त लेकर भोले जीवों को धर्म से भ्रष्ट करने से, कुधर्म रूपी कुमार्ग बतला जीवों को भ्रम में डालने से, सम्यग्दर्शी चारित्रधारी. ज्ञानी पुरुषों की निन्दा, करने से, देवद्रव्य भक्षण करने से देवद्रव्य में हानि पहुंचाने से वा दुरुपयोग करने से वा देव, गुरु, धर्म की निंदा करने आदि से मिथ्यात्व मोहनीय कर्म का बंधन होता है.
साधु, साध्वी, श्रावक श्राविकादि से शत्रुता करने से इन से द्वेष करने से धर्म की निंदा, अपकीर्चि करने कराने से दर्शन मोहनीय कर्मों का बंधन होता है.