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अतएव मनुष्य को बुद्धि पूर्वक इनके भक्षण में विचार रखना चाहिये ६ स्थिर नाम कर्म - जिस कर्म के उदय से शरीर में हड्डिय दांत आदि स्थिर रहते हैं उसको स्थिर नाम कर्म कहते हैं..
१० अस्थिर नाम कर्म - जिस कर्म के उदय से शरीर में कान जीभ आदि अस्थिर रहते हैं उसको अस्थिर नाम कर्म कहते हैं.
प्रकृति के अविरोधी व के उदय से ये दोनों साथ रहते हैं. ११ शुभ नाम कर्म - जिस कर्म के उदय से शरीर के नाभि से ऊपर के भागों का जैसे हस्तादि का दूसरे से स्पर्श होने पर उसको प्रीति उत्पन्न होती है किन्तु अभीति नहीं होती है उसको शुभ नाम कर्म कहते हैं.
१२ अशुभ नाम कर्म - जिस कर्म के उदय से नाभि के नीचे के भाग को जैसे पादादि का दूसरों से स्पर्श होने पर दूसरे उसको अपमान समझते हैं उसको अशुभ नाम कर्म कहते हैं. वे दोनों प्रकृति ध्रुवोदयी उदय अविरोधि की हैं.
१३ सौभाग्य नाम कर्म - जिस कर्म के उदय से जीव को दूसरों का उपकार न करने पर भी दूसरे उसको बहुमान देते हैं उससे भीति की इच्छा करते हैं सर्व को वो प्रिय होता है उसे कर्म को सौभाग्य नाम कर्म कहते हैं.
१४ दुर्भाग्य नाम कर्म - जिस कर्म के उदय से जीव को
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