Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 110
________________ (६२) - सूक्ष्म, तेजस और कार्मण शरीर प्रत्येक जीवों को भिन्न २ अर्थात् पृथक् २ होते हैं किन्तु औदारिक शरीर निगोद के जीवों का तो अनंत जीवों का एक २ ही औदारिक शरीर होता है निगोद के सिवाय अन्य जीवों का औदारिक शरीर भी पृथक् अर्थात् भिन्न ही होता है । साधारण नाम कर्म-जिस कर्म के उदय से निगोद का अभिन्न (अपृथक्) शरीर हो अर्थात् अनेक जीवों का एक ही शरीर हो उस शरीर में किसी जीव को शरीर प्राप्त हो उसको साधारण नाम कर्म कहते हैं। वनस्पति काय के दो भेद होते हैं १ प्रत्येक वनस्पतिकाय और २ साधारण वनस्पतिकाय-प्रत्येक वनस्पति काय उन वनस्पतियों को कहते हैं जिनमें एक शरीर में एकही जीव होता हैं. . . . साधारण वनस्पति काय कंद मूल आलू कांदे लहशुन आदि जमीकंद को कहते हैं जिनमें अनंत जीवों का एक शरीर होता है इन जमीकंद के जीवों को निगोद के जीव कहते हैं यह शरीर साधारण नाम कर्म के उदय से प्राप्त होता है। इन जमीकंद को खाने में एक वनस्पति को खाने में अनंत जीवों की हिंसा होती है और अन्य वनस्पतियां केला आम आदि में एक वनस्पति खाने में एकही जीव की हिंसा होती है

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