Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 108
________________ ( 20 ) एकेंद्रिय को ४ पर्याप्त होती हैं, विकलेंद्रिय और असंज्ञा पंच: द्रिय को ५ पर्याप्ति होती है और संज्ञी पंचेंद्रिय को ६ पर्याप्ति होती है." पर्याप्ति के ६ भेद इस प्रकार होते हैं । " (क) आहार पर्याप्ति - जिस कर्म शक्ति से दूसरी गति में जाने के समय जीव नवीन पुद्गल ग्रहण करता है उसको आहार पर्याप्ति कहते हैं | ( ख ) शरीर पर्याप्ति-जिस कर्म शक्ति से आहार ग्रहण पश्चात् जीव सात धातु के रूपमें शरीर बनाता है उसको शरीर पर्याप्त कहते हैं । (ग) इंद्रिय पर्याप्ति - जिस कर्मशक्ति से शरीर ग्रहण करने पश्चात् जीव इंद्रियों के रूप में शरीर को परिणामन करता है उसको इंद्रिय पर्याप्त कहते हैं । (घ) श्वासोश्वास पर्याप्ति-जिस कर्मशक्ति से जीव श्वासो श्वास के पुद्गल ग्रहण कर श्वासोश्वास रूप में परिणमन करता है उसको श्वासोश्वास पर्याप्त कहते हैं । (च) भाषा पर्याप्ति - जिस कर्मशक्ति से जीव भाषा द्रव्य के पुद्गलों को ग्रहण कर भाषा रूप में परिणमन करता है उसको भाषा पर्याप्त कहते हैं । - (छ) मनो पर्याप्ति - जिस कर्मशक्ति से जीव मनद्रव्य के पुद्गल ग्रहण कर मन रूप में परिणमन करता है उसको मनो

Loading...

Page Navigation
1 ... 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131