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( 8) के एकेंद्रिय जीव स्थावरकाय है. . . ३ वादर नाम कर्म-जिस कर्म के उदय से जीव को ऐसा शरीर मिले जो दूसरों के देखने में आसके उसको वादर नाम कर्म कहते हैं.
४ सूक्ष्म नाम कर्म जिस कर्म के उदय से जीव को ऐसा शरीर मिले जो दूसरों के देखने में नहीं आसके उसको सूक्ष्म नाम कर्म कहते हैं. ५प्रकार के एकेंद्रिय जीव जो सूक्ष्म होते हैं वे एकेंद्रिय जीव १४ राजलोक में सर्वत्र व्याप्त है जो चर्म चक्षु से नहीं दिखते हैं विशेष अधिकार जीव विचार से जानना चाहिये.
म कर्म-जिस कर्म के उदय से आरम्भ की हुई पर्याप्ति पूर्ण किये बिना ही जीव की मृत्यु नहीं हो उसको पर्याप्ति नाम कर्म कहते हैं. . पुद्गलों के उपचय से पुद्गल परिणमन की जो शक्ति होती है उसको पर्याप्ति कहते हैं. पर्याप्ति सामान्य रीति से दो प्रकार की होती है:
अ. लब्धि-जो जीव की पर्याप्ति पूर्ण किये पश्चात् मृत्यु हो उसको लब्धि पर्याप्ति कहते है
ब. करण-जो जीव की पर्याप्ति पूर्ण किये पश्चात् मृत्यु हो वा न हो किन्तु पर्याप्ति पूर्ण हुवे पश्चात् करण पर्याप्ति कहते हैं.
विशेष रीति से पर्याप्ति ६ प्रकार की होती है. जिस में