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(८१) एक गति त्याग करके दूसरी गति में जीव जावे तव मार्ग में अनुपूर्वी कर्म, उत्पन्न हो तव गति कर्म, जितने काल तक उस (नवीन) योनि में रहे तव तक आयु कर्म, का उदय रहता है।
अनुपूर्वी नाम कर्म का उदय जहां दो समयादि की विग्रह गति होती है वहां होता है चारों गति में वक्रगति होती है इसलिये चारोंगति में जाते समय अनुपूर्वी कर्म का उदय रहता है देवगति में जाते देवानुपूर्वी, का मनुष्य गति में जाते मनुष्यानु पूर्वी का इत्यादि।
जहां एक ही समय में सम श्रेणी में जीव जाता है वहां अनुपूर्वी की आवश्यक्ता नहीं अर्थात् जव जीव मोक्ष में जाता हैं तब अनुपूर्वी नहीं होती है अर्थात् जहांजीव सीधी गति (चाल) से दूसरी गति में जाता है तव अनुपूर्वी नहीं होती है। यह गति मोक्ष की है पिछे संसार भ्रमण नहीं रहता।
विहायो गति नाम कर्म फे २ भेद । जिस कर्म के उदय से जीवकी शुभा शुभ चाल होती है उस को विहायो गति नाम कर्म कहते हैं। . : १ शुभ विहायंगति-जिस कर्म के उदय से जीव (शरीर धारी.) शुभ चाल से चलता है उसको शुभ विहायगति नामकर्म कहते हैं जैसे बैल की चाल सीधी होती है मनुष्य की सीधी चाल होती है हाथी की सीधी चाल होती हैं।