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और शरीर का प्रकाश भी उष्ण होने पर भी उनको श्रातप नाम कर्म का उदय नहीं है कारण कि उनके शरीर का ताप जितनी २ दूर बढ़ें इतनी कम होती जाती हैं इसलिये उनको उपर्श नाम कर्म और रक्त वर्ण नाम कर्म का उदय है ।
प्रसुसि पयास रूवं, जिचंग मुज्जो ए इहुज्झोत्रा, जइ देवुत्तर विविध, जोइस खज्जो - अ माइव्व ॥ ४६ ॥
उद्योत नाम कर्म का स्वरूप |
जिस कर्म प्रकृति से जीव के शरीर में से शीत प्रकाश निकलता है उसको उद्योत नाम कर्म कहते हैं ।
देवताओं को उद्योतनाम प्रकृति भव आश्रित होती है और जब कहीं अन्यत्र जाते हैं और नया शरीर बनाते हैं तब भी उन को उद्योत नाम प्रकृति के उदय से उनके शरीर से शीतप्रकाश निकलता है ।
लब्धिवंत मुनिराज भी जब नया शरीर ग्रहण करते हैं तो उद्योतं नाम कर्म के उदय से उनके शरीर से शीतप्रकाश निकलता है । .
सूर्य के सिवाय चंद्र, ग्रह, नक्षत्र और तारा आदि के विमानों में जो रत्न के जीव है उनके शरीर में भी उद्योत नाम
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