________________
६
....शरीर नाम कर्म के ५ भेद । ..१ औदारिक-जिस कर्म के उदय से जीव को औदारिक शरीर प्राप्त होता है. उसको औदारिक शरीर कहते हैं: हड्डी, मांस, रक्तादि का बना हुवा शरीर औदारिक शरीर नाम कर्म कहलाता है ऐसा शरीर तियच और मनुष्य को प्राप्त. हुआ करता है तिर्यंच को इस शरीर में मुक्ति नहीं प्राप्त होसक्ती है किंतु मनुष्य को इस शरीर में मुक्ति भी प्राप्त होसक्ती है और तीर्थकरादि पद भी प्राप्त होता है......... ... ... .." २ वैक्रिय-जिस कर्म के उदय से जीव को ऐसा शरीर मिले जिससे भिन्न २ आकार रूप क्रिया होसक्ती हो उसको वैक्रिय शरीर नाम कर्म कहते हैं इस शरीर में हड्डी मांसादि नहीं होते हैं। देवता और नारकी जीवों को वैक्रिय शरीर स्वाभाविक होता है किंतु तिथंच और मनुष्य को लब्धि द्वारा प्राप्त होता है। .. . ... . . . .
३.आहारक-जिस कर्म के उदय. सें. जीव को ऐसा शरीर प्राप्त हो जिससे चौदह पूर्वधारी मुनि की अवस्था में तीर्थकर की ऋद्धि देखने को नवीन शरीर उत्पन्न कर सके उसको आहारक शरीर नाम कर्म कहते हैं आहारक शरीर के वल अम्मादी मुनि अवस्था में प्राप्त हो सकता है इसका परि. माण १ हाथ (कलाई से कोहनी तक) का होता है।
.
.