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(७०). . · संघातन नाम कर्म का स्वरूप । • जिस कर्म से औदारिक आदि शरीरों के बंधन होने के लिये बंधन के पूर्व कर्म पुद्गल इकठे होते हैं जैसे कि दंताली से तृण समूह इकठा होता है उस कार्य को पांच प्रकार के शरीरों की अपेक्षा से पांच प्रकार के संघातन नाम कर्म जानना चाहिये। .१ औदारिक संघातन नाम कर्म. २ वैक्रिय संघातन नाम कर्म..
३ आहारक संघातन नाम 'कर्मः ४ तैजस संघातन नाम कर्म, ५.कार्मण संघातन नाम कर्म .
.. . ओराल विउव्वा हारयाणं सग ते कम्म जुत्ताणं, नव बघणाणि इअर दु. सहिआणि तिनि तेसिंच ॥३७॥
... प्रकारान्तर से १५ प्रकार का बंधन
औदारिक, वैक्रिय और आहारक इन ३: शरीरों का उस · ही. शरीर का उसही शरीर से युक्त होने से ३ प्रकार के बंधन
होते हैं और इन शरीरों को तैजस और कार्मण के साथ . के साथ प्रत्येक को युक्त करने से तीन २ अर्थात् छः बंधन
होते हैं इस प्रकार ९ प्रकार के बंधन होते हैं. :
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