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लोभ के ४ भेद । संज्वलन लोभ-जैसे हलदी का रंग वस्त्रादि से सहज ही में छूटजाता है वैसे ही जो ममत्व सहज ही में छूट जावे उसको संज्वलन लोभ कहते हैं.। . . . . . . . - प्रत्याख्यानी लोभ-जैसे मिट्टी के बरतन ( करवा) का मैल कठिनता से छूटता है वैसे ही जो ममत्व कठिनता से छूटता है उसको प्रत्याख्यानी लोभ कहते हैं।
• अप्रत्याख्यानी लोभ-जैसे गाड़ी का वांग (5का काला चीकट.) की चीकनाई वस्त्रादि पर लग जाये तो अनेक प्रयोगों से:अत्यंत कठिनता से छूटती है वैसे ही जो ममत्व अत्यंत कठिनता से छूटता है उसको अप्रत्याख्यानी लोभ कहते हैं।
अनंतानुवंधी लोभ-जैसे पक्के लाल रंग का दागः कदापि भी दूर नहीं होता है वैसे ही जो ममत्व कदापि नहीं छूटता हो उसको अनंतानुबंधी लोभ कहते है: .. . . . . . . . . . . "पाय के दो भेद भी होते हैं "-१ प्रशस्त. २ अप्रशस्त प्रशस्त कपाय वह है जो परमार्थ के लिये किया जावे जैसे वह क्रोध जो शिष्य या बच्चों को सन्मार्ग पर लाने को किया जावे इसी प्रकार जो माया या लोभ परमार्थ के लिये किया जावे वह प्रशस्त है. इससे विपरीत जो कपाय स्वार्थ के लिये