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(४ ) पर भी जैसे कदापि नहीं नमता है वैसे ही जिस मान में कदापि विनय उत्पन्न नहीं हो उसको अनंतानुबंधी मान कहते हैं । - माया क्लेहि.गोमुत्ति, मिंढसिंग घणवंस मूलसमा: लोहो हलिद्द खंजण, कदम किमिराग सारितथो. ॥ २०॥
: . . माया के ४ भेद . .' संज्वलन माया-जैसे बंसपटी (वांस की छाल ) बँचने से सीधी हो जाती है वैसे ही समझ पड़ने से जो कपदं स्वभाव शीन छूट: जावे उसको संज्वलन माया कहते हैं।
प्रत्याख्यानी माया-जैसे वैल के (चलते २ मूत्र करने के कारण) मूत्र की तिरछी रेखा सूख जाने पर मिट जाती है ऐसे ही बोध मिलने पर भी जो कपट स्वभाव छूट जावे उसको प्रत्याख्यांनी माया कहते हैं.
अप्रत्याख्यानी माया-जैसे मैंढ़े के सींघ की टेढाई प्रयोग करने पर सीधी होजाती है वैसे ही दंड मिलने पर भी जो कपट छूट जाये उसको अप्रत्याख्यानी माया कहते हैं. । अनंतानुबंधी मायां-जैसे वांस का मूल ('गांठ ) कितने भी प्रयोग किये से सीधा नहीं होता है वैसे ही जो कपटकदापि न छूटे उसको अनंतानुवंधी मायां कहते हैं।