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(५०) किया जावे वह अप्रशस्त है. प्रशस्त की मर्यादा प्रत्याख्यानी वा संज्वलन से नहीं बढनी, चाहिये.
- जस्सु दया होइ जिए हासरह अरइ सोगभय कुत्था, सनिमित्त मन्नहा वा ते इह हासाइ मोहणिग्रं ॥ २१ ॥
हनो कषाय का स्वरूप. , १ हास्य मोहनीय-जिसके उदय से ( भांड की) चेष्टा से बा विना कारण ही हंसी आवे उसको हास्य मोहनीय कहते हैं. . . २ रति मोहनीय-जिसके उदय से बिना कारण वा कारण से अनुकूल विषय में आनंद प्राप्त हो और ममत्व उत्पन्न हो उसको:रति. मोहनीय कहते हैं. . . ,
३ अरति मोहनीय-जिसके उदय से .अपने, विरुद्ध कोई कार्य होने पर अथवा कोई भी कार्य अपने विरुद्ध न होने पर जो मनमें द्वेष भाव उत्पन्न होता है और उद्वेग होता है उसको अरतिमोहनीय कहते हैं.
४ शोक मोहनीय-जिसके उदय से बिना कारण ही वा इष्ट वियोग से चित्त में खेद और रुदन उत्पन्न हो उसको शोके मोहनीय कहते हैं....
५ भय'मोहनीय-जिसके उदय से दुष्टों से वा भूत प्रेतादि