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६ संबर तत्व-कमी के रोकने के उपाय रूपी क्षायिक श्रादि भावों से प्रात्मा को शुद्ध करने का नाम भाव संवर है और भावसंवर से नये आश्रवों को रोकने का नाम द्रव्य संवर है इस प्रकार इन द्रव्य और भाव संवर को यथा योग्य समझने का नाम संवर तत्व है इसके ५७ भेद है।
. ७ बंध तत्व-शुद्ध आत्मा को प्रतिकूल क्रोधादि कपायों से कर्म बंध हेतु रूपी जो चिकनाई होती है उसको भाव बंध कहने हैं और उस चिकनाई से कर्म दल एकरूप होकर जो वंध होता है उसको द्रव्य बंध कहते हैं इन द्रव्य और भाव दंघको । वथा योग्य समझने का नाम बंध तत्व है इसके चार भेद हैं ।
: मोक्ष तत्व-कर्मनाश करने को शुद्ध आत्म स्वरूप का जो अनुभव होता है उसको भाव मोक्ष कहते हैं और जीय प्रदेशों से सर्व कर्म प्रदेशों के छूट जाने का नाम द्रव्य मोक्ष है इन दोनों का यथा योग्य द्रव्य और भाव मोक्ष. समझने का नाम मोक्ष तत्व है इसके ह भेद है।
हनिर्जरा तत्व-कर्म की शक्ति को कम करने वाले तप संयम आदि शुद्ध उपयोग रूप शक्ति को भाव निर्जरा कहते हैं और उससे कर्म प्रदेशों का आत्म प्रदेशों से पृथक् होजाने को द्रव्य निर्जरा कहते हैं इन दोनों प्रकार की निर्जरा को यथा योग्य जानने का नाम निर्जरा तत्व है।