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( ३४ ) जीच समझना जीवतत्व है.इस के १४ भेद हैं विशेष वर्णन जीव विचार से समझना चाहिये । . . २ अजीवतत्व-जिसमें चेतना लक्षण नहीं हो और जीवके प्राणों से रहित हो उसको अजीव समझने का नाम अजीवतत्व है। इसके १४ भेद हैं। : :
३ पुण्य तत्व-जीवों को दुख न देना, सहाय करनादान देना, आदि दयालु कार्यों के परिणाम को भाव पुण्य कहते हैं. और शाता वेदनीय सुख भोगने में आवे वो द्रव्य पुण्य हैं इन द्रव्य और भाव पुण्यों का यथोचित समझ ने का नाम पुण्यतत्व है इसके ४२ भेद हैं ।
४ पापतत्व-मिथ्यात्व अविरति आदि के उदय से दूसरों को दुख देने के मलीन परिणामों को भाव पाप कहते हैं। और यहां जो प्रत्यक्ष दुख भोगते हैं और मिथ्यात्व से दूसरों के साथ कपट करने की जो बुद्धि है वो द्रव्य पाप है उसे यथायोग्य समझने का नाम पापतत्व है इसके ८२ भेद हैं।
५ श्राश्रव तत्व-अनादि काल से इंद्रियों में लुब्ध होने से राग द्वेष रूप जो परिणाम होते हैं और मिथ्यात्व अविरति आदि उदय में आते हैं.वो भाव आश्रय है और उसके साथ नये कर्म समूह का आकर मिलना वो द्रव्य आश्रव है इन आश्रवों को यथा योग्य समझने का नाम आश्रय तत्त्व है इसके ४२ भेद, हैं।