Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 50
________________ ( ३२ ) दर्शन मोहनीय और उसके ३ भेदों का स्वरूप. दर्शन का अर्थ जो पहले (दर्शनावरणीय कर्म के वर्णन में) बंता चुके हैं वह अर्थ यहां नहीं समझना चाहिये ।. 1 7 यहां पर दर्शन शब्द का अर्थ धर्म पर श्रद्धा समझना चाहिये दर्शन मोहनीय के ३ भेद हैं। केवली भगवान ने पदार्थों का स्वरूप जो यथायोग्य जाना और देखा है और उनसे सुनकर गणधरों ने शास्त्रों में जो तत्व बतलाया है उसको सच्चा समझना उसे सम्यक्दर्शन कहते हैं और सम्यक्दर्शन को प्राप्त करने में जो विघ्न बाधाएं होती हैं उनके कारण को दर्शन मोहनीय कर्म कहते हैं. इसके तीन भेद हैं: - १ सम्यक दर्शन मोहनीय, २. मिश्र मोहनीय, ३ मिध्यात्व मोहनीय । प्रथम ज्यादा शुद्ध होता है द्वितीय अर्द्धशुद्ध होता है और तृतीय अशुद्ध होता है । . जैसे कि गुजरात में कोदरवा नामक एक नशेदार अन्न होता है उसको प्रथम वार धोने से उसके छिलके हट जाते हैं किन्तु वह वैसा ही नशेदार बना रहता है द्वितीय वार धोने से उसमें आधा नशा रहजाता है और तृतीय वार धोने से उसमें नशा विलकुल नहीं रहता है और खाने योग्य होजाता Test प्रकार सम्यक्त पाने पूर्व जीव तीन करण करता है। १ यथा महत्तिकरण २ अपूर्वकरण ३ अनिवृत्तिकरण इन तीनों

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