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(३०) ' श्रोसनं सुरमणुए, सायमसायं तु तिरिम निरिएसु।
वेदनीय कर्म के २ भेदों का स्वरूप । . संसार में २ प्रकार के जीव देखने में आते हैं कोई सुखी
और कोई दुखी अर्थात् जो निरोगता, लक्ष्मी आदि से युक्त हो उसको सुखी कहते है और जो दारिद्रय और विविधचिन्ताओं और रोगादि से पीड़ित हो उसको दुखी कहते है जिन कर्मों के उदय से जीव को सुख और दुख मिलता है उनको वेदनीय कर्म कहते हैं वे वेदनीय कर्म २ प्रकार के होते हैं। ।
१ शातावेदनीय-जिन कर्मों के उदय से पूर्वकृत पुण्यानुसार प्राणी को शाता अर्थात् संसारी सुख मिलता है उनको शातावेदनीय कर्य कहते है।
२ अशाता वेदनीय-जिन कर्मों के उदय से पूर्वकृत पापों के अनुसार अशाता अर्थात् दुख मिलता है उनको अशाता वेदनीय कर्म कहते हैं।
शास्त्रों में संसारी सुख को भी तलवार की धार पर शहद लगाकर चाटने के आनन्द तुल्य बतलाया है अतएव ज्ञानी पुरुप संसारी सुख की भी बांधा नहीं करते हैं किन्तु मुक्ति की ही अभिलाषा रखते हैं।